छज्जूराम धार्मिक स्वभाव का व्यक्ति था। उसके पास एक व्यापारी का लड़का रोज पढ़ने के लिए आया करता था। एक दिन उस लड़के ने कीमती गहने पहनरखे थे। छज्जूराम ने उसके गहने उतारकर रख लिए और पढ़ाने के बाद बिना गहनों के घर भेज दिया। लड़का घर पहुंचा तो मां ने पूछा, 'बेटा, गहने कहां गए?' उसने बताया कि छज्जूराम ने उतार लिए हैं।
मां ने पड़ोस की स्त्री से यह बात कही। उस स्त्री ने दूसरी से यह बात कही और इस तरह दूसरी से तीसरी होते हुए यह बात फैल गई। सभी कहने लगे कि छज्जूराम लुटेरा है, उसकी नीयत खराब है। उसकी निंदा घर-घर में होने लगी। इतने में लड़के का पिता आया तो उसे अपनी पत्नी से इस बात का पता चला। वह छज्जूराम के घर पहुंचा। छज्जूराम ने उसे गहने सौंपते हुए कहा, 'मैंने जानबूझकर गहने उतार लिए थे। मुझे डर था कि कहीं कोई इन्हें बच्चे से छीन न ले।
मैंने यह सोचकर रख लिया था कि आपको आकर सौंप दूंगा। इतने छोटे बच्चे को इस तरह कीमती गहने न पहनाएं।' लड़के का पिता घर आया। उसने कहा, 'छज्जूराम जी बहुत समझदार और ईमानदार व्यक्ति हैं।' यह बात भी एक कान से दूसरे कान तक पहुंची और हर ओर छज्जूराम की प्रशंसा होने लगी। जो लोग उसकी निंदा कर रहे थे वही सराहना करने लगे। जब छज्जूराम को अपनी निंदा और स्तुति की बात मालूम हुई तो उसने दो चुटकियों में राख लेकर फेंक दी। लोगों ने जब इसका रहस्य पूछा तो छज्जूराम ने कहा, 'यह निंदा की चुटकी है और यह है प्रशंसा की चुटकी। दोनों ही फेंकने लायक है। दुनिया द्वारा की गई निंदा और प्रशंसा पर ध्यान नहीं देना चाहिए। प्राय: यह देखा जाता है कि निंदा की अपेक्षा लोग प्रशंसा को नहीं पचा पाते। क्योंकि निंदा के मामले में तो व्यक्ति सावधान रहता है किंतु प्रशंसा के मामले में बेखबर हो जाता है।'
संकलित
Tuesday, March 3, 2009
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बहुत सही बात !!
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