शेख सादी नामी शायर थे। उनकी शायरी के दीवाने सुलतान भी थे। एक बार सुलतान शेख सादी के पास गए और बोले, शेख साहब आप ने अपना पूरा जीवन शायरी कहने और लिखने में गंवा दिया। लेकिन आप जहां पहले थे, वहीं आज भी हैं। आपकी तंगहाली खत्म नहीं हुई। मैं तोहफे के तौर पर आपको एक कीमती हीरा दे रहा हूं। इसे बेच कर आप अपनी आर्थिक तंगी दूर कर सकते हैं।
शेख ने हीरे को उलटा- पलटा और फिर सुलतान को लौटाते हुए कहा, यह आप का भ्रम है सुलतान। यह हीरा तो हमारी शायरी के एक शब्द के बराबर भी नहीं है। सुलतान भौचक्के रह गए। बोले, यह असली हीरा है, कोई पत्थर नहीं है। आपको इसकी कीमत का पता नहीं है।
शेख ने कहा, हीरा आपके लिए होगा, पर यह समाज को खंडित करता है। आपसी भाईचारे में दरार डालता है। यह खून- खराबे की जड़ है। जब कि शायरी दो दिलों को जोड़ती है और आपसी प्रेम भाव को मजबूत करती है। मेरी शायरी सुनकर लोग चैन की नींद सोते हैं, जबकि हीरा पाकर उनकी नींद गायब हो जाती है।
सुलतान ने कहा, इसका सबूत क्या है? शेख सादी ने कहा, चलो मेरे साथ। दोनों एक अनजाने नगर में गए। पहले शेख शादी ने शायरी गाना शुरू किया। उसे सुनने के लिए वहां भारी भीड़ जमा हो गई। सभी मजहब के लोग शांत भाव से उसका आनंद लेने लगे। कोई शोर शराबा नहीं। अचानक शेख ने उस हीरे को भीड़ के बीच उछाल दिया। अब उसे लूटने के लिए शोर मच गया। धक्का- मुक्की होने लगी। कई लोग घायल हो गए। जिसे हीरा मिला वह चुपके से भाग गया। बचे हुए लोग आपस तब तक लड़ते रहे, जब तक कि शेख ने उन्हें चुप नहीं कराया। लेकिन सुलतान को समझ में आ गया कि शायरी की कीमत की तुलना हीरे-मोती से नहीं की जा सकती।
संकलित
Friday, February 6, 2009
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