एक बार रामानुज के गुरु ने उन्हें अष्टाक्षर नारायण मंत्र सिखाया और कहा, 'यह मंत्र बहुत गोपनीय और प्रभावी है। यदि इसका मन ही मन श्रद्धापूर्वक जाप किया जाए तो पापों से छुटकारा मिल जाता है।' रामानुज ने पूछा, 'लेकिन जोर से उच्चारण करने में क्या दोष है?' गुरु ने समझाया, 'इससे यह मंत्र ऐसे लोगों के कानों में भी पड़ेगा जो इसके अधिकारी नहीं हैं। वे इसका आदर नहीं करेंगे।' इस पर रामानुज ने काफी मंथन किया और स्वाध्याय में लग गए। कुछ समय बाद एक दिन गुरु जी कहीं जा रहे थे, तो उन्होंने रामानुज को चौराहे पर खड़े होकर जोर-जोर से अष्टाक्षर मंत्र का जाप करते हुए देखा।
रामानुज लोगों को समझा रहे थे कि वे इसका जाप श्रद्धा से करें। गुरु ने कहा, 'यह क्या कर रहे हो? मैंने तो तुम्हें जोर-जोर से मंत्र जाप करने से मना किया था।' रामानुज ने गुरु को प्रणाम करके कहा, 'मुझे याद है गुरुदेव। मुझे यह भी पता है कि आपकी आज्ञा का पालन न करने के कारण मैं पाप का भागीदार बनूंगा। लेकिन यदि कुछ और लोग भी इस मंत्र की साधना में लगेंगे तो उनका कल्याण ही होगा।' रामानुज की इस भावना से गुरु बेहद प्रभावित हुए।
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प्रभावित होने वाली बात ही थी. अब देखिए न एक सज्जन ब्लॉगों पर टिप्पणी करके जबर्दस्ती प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं.
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