Saturday, February 7, 2009

मैं सीख गया, सूखा पत्ता देख

एक युवक ने शास्त्रों को अच्छी तरह रट लिया था, जिस कारण वह अहंकारी हो गया। एक दिन उसने अपने गुरु से कहा, 'हमें कुछ और सिखाइए।' गुरु बोले, 'सभी तरफ सिखाया जा रहा है। सीख लो।'

एक दिन वह एक पेड़ के नीचे बैठा था, तभी एक सूखा पत्ता सामने आ गिरा। उसे देखकर वह खुशी से पागल हो गया। वह आश्रम गया और सभी से कहने लगा, 'मैं सीख गया, मैं सीख गया।' सभी उससे पूछने लगे कि उसने क्या सीखा है, किस धर्मग्रंथ से सीखा है? इस पर उसने कहा, 'मैंने तो बस पेड़ के एक पत्ते को गिरते देखा और सीख गया।'

उसकी बात सुनकर दूसरे शिष्य बोले, 'अरे भाई। हम तो रोज सूखे पत्ते को गिरते देखते हैं हम तो कुछ नहीं सीखते। तुमने ऐसा क्या सीख लिया?' वह बोला, 'सूखा पत्ता गिरा तो मेरे भीतर भी कुछ गिरा। मुझे लगा कि कल मैं भी सूखे पत्ते की तरह गिर जाऊंगा। जब सूखे पत्ते की तरह गिर ही जाना है, तो फिर इतनी अकड़ क्यों? इतना अहंकार क्यों?' उसके गुरु भी यह सुन रहे थे। उन्होंने उसे गले से लगा लिया।

एक बार नेपोलियन ने एल्प्स पर्वत को लांघने की घोषणा की और सेना लेकर निकल पड़ा। उसने पहले तलहटी में खड़े होकर पहाड़ की दुर्गमता का अंदाजा लगाया फिर सेना को आगे बढ़ने का आदेश दिया। पास में ही एक बुढि़या लकड़ी काट रही थी। उसने कहा, 'क्यों जान दे रहे हो? तुम्हारे जैसे कितने आए और मुंह की खाकर यहीं रह गए।'

यह सुनते ही नेपोलियन ने झट अपने गले से हीरे का हार उतारकर बुढि़या को पहना दिया और कहा, 'आपने मेरा उत्साह दोगुना किया है। मैं भी और लोगों की तरह मरना चाहता हूं। अगर बच गया तो मेरी जय-जयकार करना।' इस पर बुढि़या बोली, 'तुम पहले ऐसे इंसान हो जो मेरी बात सुनकर हताश नहीं हुआ। जो सच्चे मन से कुछ करने की ठान लेता है, वह हारता नहीं।'

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