Sunday, February 8, 2009

ज्ञान और अंहकार

दो मित्र थे। दोनों ने एक साथ एक ही गुरु के पास विद्याध्ययन किया। अध्ययन के बाद दोनों अपने गांव लौटे। वैसे तो दोनों ने बराबर शिक्षा-दीक्षा ग्रहण की थी पर उनमें से एक अपने-आपको बड़ा विद्वान और ज्ञानी समझता था। उसमें इतना अहंकार भर गया था कि वह अपने सामने दूसरों को तुच्छ समझता था। उसका मित्र उसकी इस दशा पर चिंतित रहता था। एक दिन वह अपने घमंडी मित्र को समुद्र तट पर घुमाने ले गया। वहां उसने अपनी हथेली पर थोड़ा जल लेकर कहा, 'देखो, मेरे पास कितना सारा पानी है।' घमंडी मित्र बोला, 'लगता है तुम पागल हो गए हो। तुम्हारे सामने विशाल सागर है, जिसमें अथाह पानी है। पर तुम कुछ बूंदें लेकर ही खुश हो रहे हो। भला इस सागर के समक्ष तुम्हारी हथेली की ये बूंदें क्या मायने रखती हैं?'

पहला मित्र यही तो सुनना चाहता था। उसने झट कहा, 'मित्र, तुम मुझे पागल साबित कर रहे हो पर तुम स्वयं कम पागल हो क्या? ज्ञान का सागर अथाह है पर तुम बूंद के समान थोड़ी सी विद्या प्राप्त करके ही अपने को महाज्ञानी समझ रहे हो। यह अहंकार तुम्हें नष्ट कर देगा।' दूसरा मित्र लज्जित हो गया।

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