संतुष्ट मन वाले के लिए सभी दिशाएं सदा सुखमयी हैं, जैसे जूता पहनने वाले के लिए कंकड़ और कांटे आदि से दुख नहीं होता। - भागवत
जो कुछ तुम्हें मिल गया है, उस पर संतोष करो और सदैव प्रसन्न रहने की चेष्टा करो। यहां पर 'मेरी' और 'तेरी' का अधिकार किसी को भी नहीं दिया गया है। - हाफिज
जिसमें न दंभ है, न अभिमान है, न लोभ है, न स्वार्थ है, न तृष्णा है और जो क्रोध से रहित तथा प्रशांत है, वही ब्राह्मण है, वही श्रमण है, और वही भिक्षु है। - उदान
Sunday, February 8, 2009
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