यूनान के महान दार्शनिक सुकरात ने क्या कहा था? उसने कहा कि अपने आपको जानो। ध्यान मत बांटो। अपना ध्यान इधर-उधर मत होने दो। सबसे पहले अपने आपको जानो। उसके बाद जो करना है करो। अच्छा काम करना है, करो। सबसे बड़ी चीज है अपने आप को जानना। क्योंकि जो घोड़ा अपने आप चल नहीं सकता , उस पर सवारी कौन करेगा? वह कहां जाएगा? वह किसको कहां ले जाएगा? जो कार पहले से ही खराब पड़ी है, वह तो अपने आप गैरिज में भी नहीं जा सकती है। उसको तो धक्का मारना पडे़गा। मनुष्य की भी यही हालत हो रही है।
एक उदाहरण देता हूं। एक आदमी है और वह अपनी सारी याददाश्त खो बैठा है। पूरे तरीके से उसको कुछ याद नहीं है। उसको यह भी याद नहीं है कि वह किसका बाप है, उसका नाम क्या है, वह कहां रहता है? उसको कुछ याद नहीं है, पर उसके जो घरवाले हैं, उनको मालूम है कि ये कौन हैं? वे हर रोज उस आदमी को याद दिलाने की कोशिश करते हैं कि यह तेरा बेटा है। यह तुम को पिताजी कह कर बुलाता था। यह तेरी बीवी है, तू इससे प्यार करता है। यह तेरा भाई है, यह तेरा चाचा है। तू इस मकान में रहता है। यह तेरी नौकरी है, तू इस कंपनी में बड़ा नौकर है। सब लोग उसको बता रहे हैं और पूछते हैं कि कुछ याद आया? और वह बैठा-बैठा कहता है कि नहीं। तो उस घर में भला बताओ, क्या हालत होगी?
वह बेचारा बैठा-बैठा सोच रहा है कि मैं कौन हूं? यह कह रहे हैं कि यह मेरा बेटा है। मुझे तो कुछ याद नहीं है कि मैंने कभी शादी भी की है। यह कहती है, ये मेरी पत्नी है, परंतु मैं तो इसको जानता तक नहीं हूं। अपना चेहरा देखता है आईने में और कहता है कि यह कौन है? इसको तो मैंने पहले कभी देखा ही नहीं। ये लोग कहते हैं कि यह मेरी नौकरी है। मुझे तो याद ही नहीं कि मैं कोई नौकरी करता था।
अगर सारी की सारी याददाश्तों की लिस्ट बना ली जाए, तो आप क्या समझते हैं कि सबसे पहले उसको क्या याद आना चाहिए? सबसे पहले उसको याद आना चाहिए कि मैं कौन हूं? तो वे जो सारे रिश्ते-नाते हैं, वह उनसे तब तक नहीं जुड़ सकेगा, जब तक उसको यह याद नहीं आए कि मैं कौन हूं?
क्योंकि उसको मालूम नहीं कि मैं कौन हूं? सबसे पहले तो उसको यह याद आना चाहिए कि हां, मेरा नाम हरिराम है। जब उसको यह बात याद आ जाएगी, तब धीरे-धीरे वह और बातों को भी समझ सकता है। परंतु अगर उसको यही नहीं मालूम कि वह कौन है? तो और जो नाते हैं, उन नातों को वह कैसे जोड़ पाएगा?
अगर संसार में यह बात लागू है तो क्या हमारे निजी जीवन में भी यह बात लागू नहीं होगी कि सबसे पहले हम यह मालूम करें कि हम कौन हैं? जब यही नहीं मालूम है कि हम कौन हैं, तो हम औरों से कैसे रिश्ता जोड़ सकेंगे? जो कुछ भी हम को इस संसार के अंदर करना है, वह कैसे कर पाएंगे?
सबसे बड़ी चीज है- अपने आप को जानना। क्योंकि हर एक मनुष्य के अंदर शांति है। हर एक मनुष्य उस भगवान का प्रतीक है। हर एक मनुष्य के मन-मंदिर में उस बनाने वाले ने अपना मकान बनाया है। अगर मनुष्य अपनी जिंदगी में अपने आपको ही नहीं समझ पाया कि मैं कौन हूं तो वह औरों से रिश्ता कैसे जोड़ सकेगा? जो कुछ भी उसको इस संसार में करना है, उसे कैसे पूरा कर पाएगा? अपने यारों को, अपने मित्रों को समझाने की कोशिश करता है, परंतु अपने आपको समझ नहीं सका। अपने आप को ही नहीं जानता कि मैं कौन हूं।
संकलित
Sunday, February 8, 2009
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