Monday, February 16, 2009

कर्म का रास्ता

संत रविदास जूते बनाने का काम करते थे। वे संन्यासियों और महात्माओं से बड़े स्नेह से मिलते और उनकी सेवा किया करते थे। एक बार उन्होंने एकसंत की खूब सेवा की। संत उनसे बहुत खुश हुए। जब वह जाने लगे तो उन्होंने रविदास से कहा, 'मैं तुम्हें एक पारस पत्थर देना चाहता हूं। अगर कोई लोहे की वस्तु इससे छू जाएगी तो वह सोना बन जाएगी।' इतना कहकर उन्होंने पारस को उस लोहे की सूई से छुआ दिया, जिससे रविदास जूते गांठते थे। रविदास ने कहा, 'अब मैं जूते किससे बनाऊंगा?' संत जी ने कहा, 'अब तुम्हें जूते बनाने की क्या जरूरत है? जब भी तुम्हें पैसे चाहिए हों, इसको किसी लोहे से छुआ देना, वह सोना बन जाएगा।' रविदास ने उसे लेने से इनकार कर दिया। लेकिन संत जी नहीं माने, बड़ा जोर डाला और यह कहते हुए पारस पत्थर को उनके आसन के पास रख दिया कि आप इसकी मदद से जो चाहे करो।

एक वर्ष बाद संत जी फिर उस रास्ते से गुजरे और रविदास की कुटिया तक पहुंचे। रविदास ने बड़े आदर भाव से उनकी सेवा की। संत जी ने कहा, 'तुम अभी तक इसी कुटिया में बैठे हो। मुझे उम्मीद थी कि तुमने पारस पत्थर की मदद से कोई मंदिर बनवाया होगा, जहां बहुत से लोग आते-जाते होंगे। पर तुम तो अब भी जूते बना रहे हो।'

रविदास ने उत्तर दिया, 'अगर मैं उस पत्थर का इस्तेमाल करने में लग जाता तो अपने कर्म से विमुख हो जाता, जबकि इस संसार में कर्म हर प्राणी के लिए अनिवार्य है। इसके बिना कोई भी व्यक्ति जीवन यात्रा नहीं कर सकता। निठल्ले बैठकर भोग करने से शरीर तो अस्वस्थ होता ही है, व्यक्ति ईश्वर की नजरों में भी गिर जाता है। कर्म से ही मनुष्य अपने चरम लक्ष्य तक पहुंच पाता है और मुझे अपने लक्ष्य तक हर हाल में पहुंचना है।'

6 comments:

  1. चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है

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  2. आपका स्वागत है ब्लॉग जगत में ,और आपके निरंतर लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ........

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  3. बहुत ही सराहनीय प्रयास. शुभकामनाएं

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  4. आपका स्वाग्त है।

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  5. अच्छी पोस्ट लिखी है।बधाई।

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